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महाभारत की इन राजकुमारियों ने भी बनाया था अनैतिक सम्बन्ध, वजह जानकार रह जाएंगे हैरान

पौराणिक महाकाव्य महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है। यह एक ऐसा शास्‍त्र है जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा और बातें की जाती है और इस काव्‍य में कई रहस्‍य है जिनके बारे में आजतक सही-सही पता नहीं लग पाया है या फिर बहुत कम लोगों को ही पता है। उदाहरण के लिए राजकुमारियों ने बनाया था बनाना पड़ा अनैतिक संबंध- मतलब पति के होने के बावजूद इन रानी व पटरानियों ने किसी अन्य के साथ यौन सम्बन्ध बनाकर बच्चों को जन्म दिया।

मत्स्यगंधा जो कि महाभारत की एक प्रमुख पात्र हैं। मत्स्यगंधा बाद में सत्यवती के नाम से जानी गई। सत्यवती बहुत सुन्दर थी, इसी कारण शांतनु उनके रूप पर मोहित हो गए और विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। सत्यवती के पास एक तीसरा पुत्र भी था जिनका नाम व्यास था। जो बाद में महर्षि व्यास के नाम से जाने गए। सत्यवती ने व्यास को तब जन्म दिया जब वह कुमारी थी। महर्षि व्यास के पिता का नाम ऋषि पराशर था।

महर्षि व्यास ने सत्यवती से जब कहा कि एक राजकुमारी का पुत्र अंधा और दूसरी राजकुमारी का पुत्र रोगी होगा तो सत्यवती ने व्यास से एक बार और राजकुमारियों को व्यास के पास भेजना चाहा, लेकिन राजकुमारियां डर गई थी इसलिए उन्होंने अपनी दासी को व्यास के पास भेज दिया। दासी ने व्यास से गर्भधारण किया जिससे स्वस्थ और ज्ञानी पुत्र विदुर का जन्म हुआ।

सत्यवती के पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका और अंबालिका से हुआ, परन्तु विवाह के कुछ ही दिनों बाद चित्रांगद और विचित्रवीर्य की मृत्यु हो गई। भीष्म ने आजीवन विवाह नहीं करने की प्रतिज्ञा की थी। अपनी वंश-रेखा को मिटते देख सत्यवती ने इन दोनों राजकुमारियों को अपने तीसरे पुत्र व्यास से संतान उत्पन्न करने के लिए कहा। सत्यवती की आज्ञा से इन दोनों राजकुमारियों ने महर्षि व्यास से गर्भ धारण किया जिससे धृतराष्ट्र और पाण्डु का जन्म हुआ।

कुंती के नाम से तो हर कोई वाकिफ है। राजकुमारी कुंती की जो बाद में महाराज पांडु की पत्नी और कुरूवंश की महारानी बनी। एक ऋषि के शाप से पांडु की कोई संतान नहीं थी। तब पांडु की आज्ञा से कुंती ने, पवनदेव और इंद्र से गर्भ धारण किया और तीन पुत्रों को जन्म दिया जो युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन कहलाए। पांड़ु की एक अन्य पत्नी थी मादरी। पांड़ु की आज्ञा से इन्होंने अश्विनी कुमारों का आह्वान किया और उनसे नकुल और सहदेव को जन्म दिया।

तो इसलिए महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?

महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| क्या आपको पता है महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र? महाभारत के युद्ध में भीमसेन के पीछे महारथी विराट और द्रुपद खड़े हुए। उनके बाद नील के बाद धृष्टकेतु थे। धृष्टकेतु के साथ चेदि, काशि और करूष एवं प्रभद्रकदेशीय योद्धाओं के साथ सेना के साथ धर्मराज युधिष्ठिर भी वहां ही थे। उनके बाद सात्यकि और द्रोपदी के पांच पुत्र थे। फिर अभिमन्यु और इरावान थे। इसके बाद युद्ध आरंभ हुआ। चहरों तरफ हाहाकार मचा हुआ था| 

कौरवों ने एकाग्रचित्त होकर ऐसा युद्ध किया की पांडव सेना के पैर उखड़ गए। पांडव सेना में भगदड़ मच गई भीष्म ने अपने बाणों की वर्षा तेज कर दी। सारी पांडव सेना बिखरने लगी। पांडव सेना का ऐसा हाल देखकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि तुम अगर इस तरह मोह वश धीरे-धीरे युद्ध करोगे तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठोगे। यह सुनकर अर्जुन ने कहा केशव आप मेरा रथ पितामह के रथ के पास ले चलिए। कृष्ण रथ को हांकते हुए भीष्म के पास ले गए। अर्जुन ने अपने बाणों से भीष्म का धनुष काट दिया। भीष्मजी फिर नया धनुष लेकर युद्ध करने लगे। यह देखकर भीष्म ने अर्जुन और श्रीकृष्ण को बाणों की वर्षा करके खूब घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण ने जब देखा कि सब पाण्डव सेना के सब प्रधान राजा भाग खड़े हुए हैं और अर्जुन भी युद्ध में ठंडे पढ़ रहे हैं तो तब श्रीकृष्ण ने कहा अब मैं स्वयं अपना चक्र उठाकर भीष्म और द्रोण के प्राण लूंगा और धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों को मारकर पाण्डवों को प्रसन्न करूंगा। कौरवपक्ष के सभी राजाओं का वध करके मैं आज युधिष्ठिर को अजातशत्रु राजा बनाऊंगा।

इतना कहकर कृष्ण ने घोड़ों की लगाम छोड़ दी और हाथ में सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पड़े। उसके किनारे का भाग छूरे के समान तीक्ष्ण था। भगवान कृष्ण बहुत वेग से भीष्म की ओर झपटे, उनके पैरों की धमक से पृथ्वी कांपने लगी। वे भीष्म की ओर बढ़े। वे हाथ में चक्र उठाए बहुत जोर से गरजे। उन्हें क्रोध में भरा देख कौरवों के संहार का विचार कर सभी प्राणी हाहाकार करने लगे। उन्हें चक्र लिए अपनी ओर आते देख भीष्म बिल्कुल नहीं घबराए। उन्होंने कृष्ण से कहा आइए-आइए मैं आपको नमस्कार करता हूं। 

कृष्ण को आगे बढ़ते देख अर्जुन भी रथ से उतरकर उनके पीछे दौड़े और पास जाकर उन्होंने उनकी दोनों बांहे पकड़ ली। भगवान रोष मे भरे हुए थे, अर्जुन के पकडऩे पर भी वे रूक न सके। अर्जुन ने जैसे -तैसे उन्हें रोका और कहा केशव आप अपना क्रोध शांत कीजिए, आप ही पांडवों के सहारे हैं। अब मैं भाइयों और पुत्रों की शपथ लेकर कहता हूं कि मैं अपने काम में ढिलाई नहीं करूंगा, प्रतिज्ञा के अनुसार ही युद्ध करूंगा। तब अर्जुन की यह प्रतिज्ञा सुनकर श्रीकृष्ण प्रसन्न हो गए।

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